वो यूं ही ज़िंदगी भर, दिल दुखाते रहे,
वो हर तरह, मेरी मुश्किलें बढ़ाते रहे !
दुश्मनों के हाथों में देखे खंज़र मगर,
वार, अपनों की तरफ से ही आते रहे !
नींद आती तो देख लेते ख्वाब हम भी,
पर सितारे, आसमां से मुंह चिढाते रहे !
फेर लिया अपनों ने मुंह सदा के लिए,
मगर गैर आकर, मेरा दिल लगाते रहे !
न आयी याद उनकी कभी भी "मिश्र",
मगर फरेब उनके, सदा याद आते रहे !

Leave a Comment