न दिन को चैन, न रातों को आराम आता है,
है पाया #नसीब ऐसा, कि दर्द बेलगाम आता है !
न रहा कुछ बाक़ी इस बुत से शरीर में दोस्त,
#दिल को तो याद उनका, बस इल्ज़ाम आता है !
बरसती हैं सावन की घटायें हो कर आँखों से,
अब हर हवा का झोखा, दर्द का पैगाम लाता है !
अगर जीना है #ज़िन्दगी तो दर्द को भूलो दोस्त ,
यूं ही घुट घुट के जीना, मुश्किलें तमाम लाता है !!!

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