कोई तो अपने घर पर सोये, कोई सड़कों पर रैन गुजारे
ये भी कैसा नसीब है
कोई अपनी कारों में घूमे, पर कोई बेचारा पैदल भटके
ये भी कैसा नसीब है
कोई किसी को भिक्षा देता, कोई किसी से भिक्षा लेता
ये सब कितना अजीब है
कोई खाना बर्बाद करे, कोई एक एक रोटी को तरसे
ये सब कितना अजीब है