मेरी ज़िन्दगी को तू, यूं ही परेशान मत कर,
मेरी शराफ़तों को तू, यूं ही बदनाम मत कर !
कुछ तो ख़याल कर ले तू दुनिया जहान का,
तमाशा अपनी फ़ितरत का, सरेआम मत कर !
हर किसी को हक़ है कि वो कैसे जीये मगर,
अपने दिल को, नफरतों का ग़ुलाम मत कर !
ये ख्वाब तो टूटने के लिए ही होते हैं मेरे दोस्त,
ख़ुदा के वास्ते, औरों का जीना हराम मत कर !!!