ये ज़िन्दगी, बस रूठों को मनाते गुज़र गयी,
रोते रहे खुद, पर औरों को हंसाते गुज़र गयी !
हमें तो न बसा पाया कोई भी दिल में अपने,
मगर औरों को, दिल में ये बसाते गुज़र गयी !
लिखे हैं मुकद्दर में अज़ाब न जाने कैसे कैसे,
कि #ज़िन्दगी यूं ही, बस लड़खड़ाते गुज़र गयी !
मिले हर तरफ इंसान हमें पत्थर दिल इतने,
कि ये ज़िन्दगी, उनको ही पिघलाते गुज़र गयी !!!

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