मत समझो पत्थरों की दुनिया को सब कुछ,
गर तुमको देखनी है ज़िंदगी, तो गाँव चलिए !

मिटा डाला है जो क़ुदरत का सामान तुमने,
गर तुमको देखना है फिर से, तो गाँव चलिए !

तुम्हें कैसे रास आती हैं ये शहर की हवाएं,
गर सांस लेना है तुम्हें चैन की, तो गाँव चलिए !

क्यों घुमते फिरते हो तुम न जाने कहाँ कहाँ,
है देखना कुदरत का खज़ाना, तो गाँव चलिए !

न जानता है कोई इधर कि कोंन है पड़ोस में,
अगर देखने हैं दिलों के रिश्ते, तो गाँव चलिए !

सूरज की रौशनी भी न देख पाते कुछ लोग तो,
गर देखना है ऊषा का आँचल, तो गाँव चलिए !

यूं किस तरह से जीते हो इस शोरगुल में यारो,
गर सुननी है कूक कोकिल की, तो गाँव चलिए !

मिटा डाली है गरिमा ही तुमने हर त्यौहार की
गर तुमको देखने हैं ढंग असली, तो गाँव चलिए !

सोने चांदी से पेट भरता नहीं किसी का भी "मिश्र",
गर तुमको देखना है अन्नदाता, तो गाँव चलिए !

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