जब कभी बादल, मेरे आँगन पे गरजते हैं,
तब तब उनकी यादों के, साये लरजते हैं !
कैसे भुलाएं वो #मोहब्बत के हसीन लम्हें,
उनके सहारे तो, सुबह ओ शाम गुज़रते हैं !
वो तो पूंछते हैं #नफ़रत से हमारा रिश्ता,
हम हैं कि इसे उनका, अंदाज़ समझते हैं !
कोई कैसे भूल सकता है अपने वादे इरादे,
पर अफ़सोस, जुबां से लोग कैसे पलटते हैं !
यही #ज़िन्दगी है दोस्त अफ़सोस मत करिये,
इधर तो ऐसे ही, हर पल नज़ारे बदलते हैं !!!

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