जिंदगी का मेला अब उखड़ता सा जा रहा है
कल तक थी रौनक अब उजड़ता जा रहा है
कितने लोग आये थे गये थे कुछ पता नहीं
कितने अपने कितने पराये थे कुछ पता नहीं
बहुत से अजनबी दूर से भी आये थे मेले में
कुछ अपने बन गये कुछ बह गये थे रेले में
जो इस मेले में कमाया था इसी में गंवा दिया
जीवन के सारे झंझटों को अपने में समा लिया
समझो खत्म होता जा रहा ये ज़िंदगी का मेला
मेले में आया था अकेला जाना भी होगा अकेला

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