ना पूछिये कि ये ज़िन्दगी कैसे गुज़री
हमारी वो सहर ओ शाम कैसे गुज़री
मुद्दत गुज़र गयी यूं डूबते उछलते
ये तो दिल जानता है कि कैसे गुज़री
जो थे अपने गैरों से बदतर निकले
सोचो सितारों के बिन रात कैसे गुज़री
#मंज़िल तो थी मगर रस्ते न थे खाली
न पूछो कटीली वो रास्ता कैसे गुज़री
उम्र का ढलान है यादें ही यादें हैं
अब क्यों मरें सोच कर कि कैसे गुज़री !!!
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