ज़ालिम नफरतों ने जीना, मुहाल कर दिया
गुलशन सी ज़िन्दगी को, बदहाल कर दिया
इस दिल में शोले, कुछ इस कदर भड़के,कि
उनकी तपिश ने मुझको, निढाल कर दिया
बमुश्किल मिले थे, मोहब्बत के कुछ लम्हे,
मगर दिल की हरक़तों ने, वबाल कर दिया
कभी अपनी भी सौहरत थी, इस ज़माने में,
पर वक़्त के इस फेर ने, फटेहाल कर दिया
यक़ीं था कि आएगा क़ातिल, सामने से यारो,
पर उसने तो मुझे पीछे से, हलाल कर दिया
मैंने पूछी थी ज़िन्दगी से, उसकी रजा ,
पर उसने तो मुझसे, उल्टा सवाल कर दिया
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