ज़िन्दगी के, हर सबालात से डर लगता है,
जो गुज़र गए, उन लम्हात से डर लगता है !
काटने को दौड़ता है मेरा अतीत मुझको,
उसके तो अब, ख़यालात से डर लगता है !
मुड़ कर के देखने की हिम्मत न बची अब,
मुझे तो गुज़रे हुए, हालात से डर लगता है !
चुप के से जी लूं ज़िन्दगी जो बची है शेष,
मुझे कांइयों की, करामात से डर लगता है !
इस तक़दीर ने भी बड़े गुल खिलाये हैं दोस्त,
अब इसकी, हर ख़ुराफ़ात से डर लगता है !!!

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