फुर्सत नहीं किसी को भी हमारे पास आने की
बदल दी हैं सबने निगाहें लानत है ज़माने की
उसने भी आँखें फेर लीं जो दिल का अज़ीज़ था
न बची अब ख्वाहिशें किसी से दिल लगाने की
बहुत ज़हर पिया है इस नादान दिल ने दोस्तो
अब हिम्मत नहीं बची है ज़रा और भी पचाने की
अब आदत हो गयी है रहने की अंधेरों में दोस्त,
न जगती है कोई चाहत दिल में शमा जलाने की...
चाहे दरकीं हैं दीवारें, मगर घर अभी बाक़ी है
हालात बदले हों भले ही, असर अभी बाक़ी है
दिल में कितने ही सवालात हों ख़िलाफ़त के,
मगर जैसा भी है, रहने को शहर अभी बाक़ी है
बड़ी ही शान थी इन दर ओ दीवार की कभी,
मिट गयी वो रंगत, मगर खंडहर अभी बाक़ी है
यहाँ बसती है मेरे अहसासों की दुनिया दोस्तो,
बस जी लूं कुछ और, इतना सबर अभी बाक़ी है
नफरतें तो मिली खूब, मगर मोहब्बत न मिली,
दिल को ज़ख्म तो मिले, मगर चाहत न मिली !
कैसे हैं #नसीब वाले वो कि हंस लेते हैं खुल कर,
एक हम हैं कि मुस्कराने की, मोहलत न मिली !
ढूंढते रहे #दुनिया में हम खुशियों का कोई कोना,
मगर अफ़सोस, उधर जाने की हिम्मत न मिली !
कचोटते रहते हैं #दिल को वो गुज़रे हुए लम्हात,
मगर कोशिश के बाद भी, इनसे फुर्सत न मिली !
सोचता था यारो कि न आये ख़म किसी रिश्ते में,
पर अफ़सोस, मेरे अहसास को इज़्ज़त नहीं मिली !!!
ये ज़िन्दगी, बस रूठों को मनाते गुज़र गयी,
रोते रहे खुद, पर औरों को हंसाते गुज़र गयी !
हमें तो न बसा पाया कोई भी दिल में अपने,
मगर औरों को, दिल में ये बसाते गुज़र गयी !
लिखे हैं मुकद्दर में अज़ाब न जाने कैसे कैसे,
कि #ज़िन्दगी यूं ही, बस लड़खड़ाते गुज़र गयी !
मिले हर तरफ इंसान हमें पत्थर दिल इतने,
कि ये ज़िन्दगी, उनको ही पिघलाते गुज़र गयी !!!