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अब किसी की घात का, अहसास नहीं होता !
ज़ख्मों में उठी टीस का, अहसास नहीं होता !
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यूं ही कभी तालियां, तो कभी गालियां मिलती रहेंगी
कहीं पर
ग़म, तो कहीं पर शहनाइयां मिलती रहेंगी
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कभी नाम बदल लेता है, कभी काम बदल लेता है
सब कुछ पाने की ललक में, वो ईमान बदल लेता है
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हज़ारों शिकवे हैं ज़िन्दगी से,
किसी और से क्या शिकवा करें,
ग़म इतने रास आने लगे अब,
किसी और से ज़िकर क्या करें...
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