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खिंची चली आती हैं तितलियाँ, फूलों के क़रीब
भंवरे भी छेड़ते हैं अपनी तान, फूलों के क़रीब
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उन्हें फिर से आजमाने को जी करता है
उनसे फिर दिल लगाने को जी करता है
दुनिया के रंगों से हमारा जी भर गया
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दो पल की #खुशी है.. फिर वीरानी रात है...
#जिन्दगी का बदलता.. यूँ नया अन्दाज है...
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अजीब कश्मकश में गुजरी है #जिन्दगी अपनी भी यारो,
#दिलों पर #राज किया फिर भी #मोहब्बत को तरसे है...
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ऐ #दोस्त..! अब तू ही बता
तुझे ऐसा करने की #जरुरत क्या थी ?
#चाहते तो हम भी खोल देते, #किताब अपने #दिल की....
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एक क़तरा आँसू भी,
उनसे बहाया न गया
किसी खौफ से, अपना मुंह उठाया न गया
मेरी #मौत पर भी वो हौंसला न जुटा पाये,
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मजबूर थे जो #मोहब्बत हम ज़ता न सके,,,
#ज़ख्म खाते रहे मगर किसी को बता न सके...
चाहतों की हद तक #चाहा उनको यारो,,,
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जिस दिन से
उनसे दूर हुए, हमने तो हँसना छोड़ दिया
हो कर रह गए दीवारो में क़ैद, बाहर निकलना छोड़ दिया
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दीवानों की तरह हम,
उनसे #प्यार किया करते थे
खुद से भी ज्यादा, उन पे ऐतबार किया करते थे
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ऐ #दोस्त..!
अब तू ही बता तुझे ऐसा करने की #जरुरत क्या थी ?
#चाहते तो हम भी खोल देते, #किताब अपने #दिल की....
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