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कितना मतलबी है जमाना, नज़र उठा कर तो देख
कोंन कितना है तेरे क़रीब, नज़र उठा कर तो देख
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#लॉकडाउन के दौरान
रसोई में काम किया तो पता चला कि...
ये पकौड़े, ब्रेड पकौड़े, कचौरी, पूरी, समोसे
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मैं खामोश हूँ लेकिन, मैं भी जुबाँ रखता हूँ !
लोगों के छोड़े तीर, दिल में जमा रखता हूँ !
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किसी की मजबूरियों
पर, हंसा मत करिये
यूं बेसबब झूठे गरूर का, नशा मत करिये
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यारो कोरोना ने सब को, वफ़ादार बना दिया
रिश्तों की भारी घुटन को, हवादार बना दिया
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मैं फूलों की दास्ताँ, काँटों की जुबानी लिखता हूँ
ख़िज़ाँ की जुबाँ से, गुलशन की कहानी लिखता हूँ
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हम पक्षी तो नहीं, के हमारे पंख हो
फिलाल भटका हुआ हूँ
जिसका कोई पथ हो
वो इंसान बनना चाहता हूँ
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गर ज़िंदा रहे यारो, तो कल की सहर देखेंगे
रस्ते से हटे कांटे, तो अपनी भी डगर देखेंगे
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कोई तो मेरी चाहतों को, ज़रूर समझेगा
कोई तो मेरी आदतों को, ज़रूर समझेगा
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ज़रा सी देर में, इसरार बदल जाते हैं
वक़्त के साथ, इक़रार बदल जाते हैं
दौलत है तो सब दिखते हैं अपने से,
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