यारो कोरोना ने सब को, वफ़ादार बना दिया
रिश्तों की भारी घुटन को, हवादार बना दिया
कुछ दिन तो याद आया ऑफिस भी ज़रूर,
पर इस आफ़त ने फिर से, घरवार बना दिया
छोड़ दी दोस्ती यारी मगर फोन का क्या करें,
हमें अपनों ने पूंछ पूंछ कर, बीमार बना दिया
जाने किसने उड़ा दिया कि नासाज़ है तबियत,
अपनों ने झूठी खबर को, अखबार बना दिया
यारो सच तो ये है कि होते हैं अपने, अपने ही,
फिर से गुज़रे फ़सानों को, नमूदार बना दिया
नंगी तलवार तो टंगी है हर किसी के सर पर,
मगर सब को ही साहस का, सरदार बना दिया
आयी है आफ़त तो एक दिन जाएगी भी"मिश्र",
मगर कुदरत ने सब को, ख़बरदार बना दिया