अपनों की इज़्ज़त, कभी उछाली नहीं जाती
बुज़ुर्गों की कोई दुआ, कभी खाली नहीं जाती
न उम्र बची है न तो जज़्बात ही रहे अब वैसे,
पर क्या करें दिल की उड़ान, संभाली नहीं जाती
जानते हैं उस वे-वफ़ा की हर फितरत को हम,
मगर कोई बात उसकी, हमसे टाली नहीं जाती
सहने की इतनी ताक़त दी है ख़ुदा ने हमें, कि
किसी के खिलाफ, कोई बात निकाली नहीं जाती
ख़ुदा खैर करे कट जाए ज़िंदगी ख़ुशी से "मिश्र"
अब ग़म की कोई बात, दिल में बिठाली नहीं जाती
आज कल मुस्कराने का, कोई आधार नहीं मिलता
किसी को कैसे कहें अपना, वो आधार नहीं मिलता
फैले पड़े हैं मतलबी रिश्ते हमारी यादों के मलवे में,
पर कहाँ से मिलेगा असली, वो बाज़ार नहीं मिलता
नफरतों की दीवारें खिंच गयी हैं अब हर आँगन में,
कैसे गिराएं इनको, हमें कोई औजार नहीं मिलता
इस कदर ज़हर भरा है हर किसी के दिल में "मिश्र",
पर अफसोस हमें इसका, कोई उपचार नहीं मिलता...
हर ग़म से गुज़रा हूँ, अब खुशियों का इंतज़ार नहीं
अब तक ज़िंदा हूँ मगर, अब जीने की दरकार नहीं
मैं तो मुरझाया फूल हूँ उजड़े हुए चमन का, मगर
चुभन से भर दूँ मैं किसी का दामन, मैं वो खार नहीं
दुनिया के बाजार में तो बिकता है सब कुछ मगर
मैं तो नाकाम चीज़ हूँ ऐसी, कि जिसका खरीदार नहीं
ये मतलब के नाते रिश्ते बड़े क़रीब से देखे हैं मगर
यहां पै किसी के दर्दो ग़म से, किसी को सरोकार नहीं
जानता हूँ कि अतीत के लिए रोना बेमानी है मगर,
क्या करूँ “मिश्र” इस दिल पै, मेरा कोई इख़्तियार नहीं...
या ख़ुदा, मेरे घर में भले ही अँधेरा रहे
पर उनके घर में #चांदनी का बसेरा रहे
आ जाये हमें #मौत भी तो कोई गम नहीं,
पर उनके दामन में खुशियों का डेरा रहे
मेरे मुकद्दर में हैं बस तन्हाइयों की रातें,
पर हमेशा उनकी #ज़िन्दगी में सवेरा रहे
गर उनका साथ है पार कर लूँगा समंदर भी,
फिर हर तरफ चाहे मुश्किलों का घेरा रहे...