Shanti Swaroop Mishra

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Aaj Naseeb Sath Hai To

आज नसीब साथ है, तो उसका सबब तुम हो
खुशियाँ मेहरवान हैं, तो उसका सबब तुम हो
मैं कैसे न लुटा दूं जान तुम पर सनम,
मेरी साँसें मेरे साथ हैं, तो उसका सबब तुम हो
इस ज़माने के कितने रंग देखे हैं मैंने,
वो दुनिया मेरे साथ है, तो उसका सबब तुम हो
पतझड़ ने तोड़ फेंका पत्ता पत्ता जिसका,
गुलशन में फिर बहार है, तो उसका सबब तुम हो
जो दिल डूबा था कभी मुस्तक़िल अंधेरों में,
हर कोना उसका रोशन है, तो उसका सबब तुम हो...

Har kadam pe rona aaya

ज़िंदगी तेरे हर कदम पे रोना आया
तेरे सफर की हर डगर पे रोना आया
कैसे जिया हूँ अब तक ये खुदा जाने,
आज उसके भी करम पे रोना आया
कभी मुकद्दर तो कभी वक़्त से गिला,
मुझे तो तेरे हर भरम पे रोना आया
नचाया है खूब अपने इशारों पे मुझे,
मुझे तो मेरी बदनसीबी पे रोना आया
कहते हैं कि ज़िंदगी हसीन होती है,
पर मुझे तो तेरे हुस्न पे रोना आया
इसके चंगुल में ऐसा फंसा हूँ दोस्त,
कि मुझे तो अपने जीने पे रोना आया...

Kaise Khyal Dil Mein Aa Rahe

जाने कैसे ख्याल दिल में चले आ रहे हैं
कोई मंज़िल नहीं फिर भी चले जा रहे हैं
ये दिले नादान इतना उदास मत हो
तेरी ही ख़ातिर हम यूं गम पिये जा रहे हैं

#मोहब्बत का ये कैसा मुकाम है यारो
हार कर भी जीत की बात किये जा रहे हैं
नतीज़ा पता हैं फिर भी न जाने क्यों
हम ख़्वाबों के गहरे भंवर में फंसे जा रहे हैं

ज़िंदगी में उजाला था उनकी वजह से
अब तो मुस्तकिल अंधेरों में घिरे जा रहे हैं
ऐ हवाओ हमारा पैगाम दे दो उनको
कि हम तो शोला-ए-ज़फा में जले जा रहे हैं...

Zindagi bhar bikharta rha

ज़िंदगी के सफर में, मैं बिखरता ही रहा
गिर गिर के फिर से, मैं संवरता ही रहा
आते रहे ग़म के तूफ़ां रस्ते में लेकिन,
दिल में हौसले का सूरज, चमकता ही रहा
गर्दिशों में न मिला सहारा अपनों से ज़रा,
मुसाफिर की तरह यूं ही, मैं भटकता ही रहा
पल पल सिमटते गये ज़िंदगी के लम्हें,
न मिला हमसफ़र कोई, मैं मचलता ही रहा
चंद कदमों का फासला ही बचा है अब,
सुकून ही सुकून है जिसको, मैं तरसता ही रहा...

Zindagi to viran hai

ज़िंदगी तो वीरान है, और बस कुछ भी नहीं
यूं धड़कनें ही शेष है, और बस कुछ भी नहीं
दुनिया के अजब चक्र में फंस गया हूँ मैं यारो,
इतना सा फसाना है, और बस कुछ भी नहीं
कोई ख्वाहिश न बची कुछ भी पाने की अब,
ज़रा सा प्यार चाहिये, और बस कुछ भी नहीं
ज़िंदगी के सफर में कांटों की कमी नहीं यारो,
अकेला ही चलूँगा मैं, और बस कुछ भी नहीं
मिलाया था हाथ जिनसे अपना समझ कर,
उसने ही दिया धोखा, और बस कुछ भी नहीं
अपनो से ज्यादा तो गैरों ने समझा मुझे,
दूर की सलाम काफी है, और बस कुछ भी नहीं...