Shanti Swaroop Mishra

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Musafir sab kuch bhool gya

अपनी धुन में मस्त मुसाफिर, बीता रास्ता भूल गया
क्या छोडा किसको छोडा, सब अपना पराया भूल गया
दुनिया का चलन ही ऐसा है उसका कोई दोष नहीं,
आगे बढने की चाहत में, वो गुज़रा जमाना भूल गया
कैसे लोग थे कैसी बातें कैसी थी लोगों की घातें,
कैसा था मंज़र गालियों का, वचपन के सपने भूल गया
कभी कोंधती होगी बिजली मन में उसकी यादों की,
धुंधला अक्श उभरता होगा, पर लोगों के चेहरे भूल गया
जिन राहों ने मंज़िल बख्सी उनका खयाल नहीं रखा,
उसने तो बस आगे देखा, वो पीछे की कहानी भूल गया

Dillagi ab achchhi nahi lagti

तन्हाईयों की ज़िंदगी अच्छी नहीं लगती
उनके बिना भीड़ भी अच्छी नहीं लगती
आदत नहीं मुझे उनके बिन रहने की,
महफ़िलों की शान भी अच्छी नहीं लगती
रात का सन्नाटा डराता है मेरे दिल को,
दूर बजती शहनाई भी अच्छी नहीं लगती
क्यों बेचैन है मेरा दिल इतना ?
कि दिल्लगी भी अब अच्छी नहीं लगती

Kitna Hai Mujhse Pyar

कितना है मुझसे प्यार, बस इतना बता दो
कितना है तुम्हें ऐतबार, बस इतना बता दो
बहुत मुश्किल में है ज़िंदगी तुमहारे बिन,
कब तक रहूं मैं तन्हा, बस इतना बता दो
बे सब्र है दिल दीदार के लिये जाने कबसे,
कब तक वो करे इंतज़ार, बस इतना बता दो
दीवानगी की हद तक है चाहत हमारी सनम,
क्या तुम्हें भी है इकरार, बस इतना बता दो
हमारी नज़र तो रहेगी हर डगर पर ,
पर कब होगी मुलाक़ात, बस इतना बता दो...

Sach batata hai Aaina

दोस्ती या दुश्मनी, नहीं निभाता है आईना
जो उसके सामने है, वही दिखाता है आईना
सामने ला देता है सच जो नहीं दिखता हमें,
अच्छा या बुरा, कुछ नहीं छिपाता है आईना
चुपके से पोंछ डालो गर्द चेहरे की "मिश्र",
किसी के दाग, किसी को नहीं बताता है आईना

Aag lagi hai hawaon mein

क्यों लगी है आग सी आज इन हवाओं में
जल रहा है तन बदन आज इन फिज़ाओं में
दिल्लगी को प्यार समझ बैठे हम उनका
फस गया बेचारा दिल उनकी हसीं अदाओं में
रहेंगे पास तो सतायेगी याद उनकी
अब छोड़ देंगे शहर हम उनकी दी सजाओं में