अपनी धुन में मस्त मुसाफिर, बीता रास्ता भूल गया
क्या छोडा किसको छोडा, सब अपना पराया भूल गया
दुनिया का चलन ही ऐसा है उसका कोई दोष नहीं,
आगे बढने की चाहत में, वो गुज़रा जमाना भूल गया
कैसे लोग थे कैसी बातें कैसी थी लोगों की घातें,
कैसा था मंज़र गालियों का, वचपन के सपने भूल गया
कभी कोंधती होगी बिजली मन में उसकी यादों की,
धुंधला अक्श उभरता होगा, पर लोगों के चेहरे भूल गया
जिन राहों ने मंज़िल बख्सी उनका खयाल नहीं रखा,
उसने तो बस आगे देखा, वो पीछे की कहानी भूल गया
तन्हाईयों की ज़िंदगी अच्छी नहीं लगती
उनके बिना भीड़ भी अच्छी नहीं लगती
आदत नहीं मुझे उनके बिन रहने की,
महफ़िलों की शान भी अच्छी नहीं लगती
रात का सन्नाटा डराता है मेरे दिल को,
दूर बजती शहनाई भी अच्छी नहीं लगती
क्यों बेचैन है मेरा दिल इतना ?
कि दिल्लगी भी अब अच्छी नहीं लगती
कितना है मुझसे प्यार, बस इतना बता दो
कितना है तुम्हें ऐतबार, बस इतना बता दो
बहुत मुश्किल में है ज़िंदगी तुमहारे बिन,
कब तक रहूं मैं तन्हा, बस इतना बता दो
बे सब्र है दिल दीदार के लिये जाने कबसे,
कब तक वो करे इंतज़ार, बस इतना बता दो
दीवानगी की हद तक है चाहत हमारी सनम,
क्या तुम्हें भी है इकरार, बस इतना बता दो
हमारी नज़र तो रहेगी हर डगर पर ,
पर कब होगी मुलाक़ात, बस इतना बता दो...
दोस्ती या दुश्मनी, नहीं निभाता है आईना
जो उसके सामने है, वही दिखाता है आईना
सामने ला देता है सच जो नहीं दिखता हमें,
अच्छा या बुरा, कुछ नहीं छिपाता है आईना
चुपके से पोंछ डालो गर्द चेहरे की "मिश्र",
किसी के दाग, किसी को नहीं बताता है आईना
क्यों लगी है आग सी आज इन हवाओं में
जल रहा है तन बदन आज इन फिज़ाओं में
दिल्लगी को प्यार समझ बैठे हम उनका
फस गया बेचारा दिल उनकी हसीं अदाओं में
रहेंगे पास तो सतायेगी याद उनकी
अब छोड़ देंगे शहर हम उनकी दी सजाओं में