Shanti Swaroop Mishra

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Zindagi ki sham ho gayi

आधी उम्र तो, ख्वाहिशों के नाम हो गयी
जो बची थी वो, नफरतों के नाम हो गयी
मोहब्बतों के लिये वक़्त ही न बचा अब,
देखते ही देखते, ये ज़िंदगी तमाम हो गयी
जीते रहे सिर्फ शोहरतों के लिये हम, मगर,
फरेबी दुनिया में, ज़िंदगी बदनाम हो गयी
वक़्त सरक गया हाथों से रेत की तरह "मिश्र",
होश आया जब तक, ज़िंदगी की शाम हो गयी

Mat Lapeto Kafan Se Chehra

मत लपेटो कफ़न से चेहरा, आँखें खुली रखने की आदत है
देखता हूँ आ जायें वो शायद, या अब भी कोई अदावत है
क्यों उतावले हो मुझे कंधों पै लादने के लिये "मिश्र",
कुछ देर और ठहर जाते, देर से आने की उनकी आदत है

Mohabbat se dar gya hoon

मोहब्बत के नाम से डर गया हूँ मैं
अपनी ही नज़रों में गिर गया हूँ मैं
बेवफाई का जिक्र क्या करना "मिश्र"
हसीनों के मेले से गुज़र गया हूँ मैं
न वो दिल रहा न प्यार का जुनून
अब ठोकरें खाकर सुधर गया हूँ मैं
न आँसूं न ग़म न लटका हुआ चेहरा
इश्क़ की आफतों से उबर गया हूं मैं...

Zindagi ke khel ajeeb hain

ये ज़िंदगी के खेल भी कित्‌ने अजीब होते हैं
सच्चाई की राह में हमेशा काँटे नसीब होते हैं
नहीं चाहता कोई अपनों से दूर होना “मिश्र”
पर देते हैं वही धोखे जो दिल के करीब होते हैं

Uski Yaad Fir Na Aaye

आजकल अजीब सी बेकली से गुज़र रहा हूँ मैं
जो कभी मुंह लगाई थी उसको उगल रहा हूँ मैं
मैंने उसे अपने दिल के हमेशा करीब रखा,
पर वर्षों की पुरानी दोस्ती अब दफना रहा हूँ मैं
जाते जाते भी अपना असर दिखा रही है वो,
तड़प बहुत होती है मगर हिम्मत दिखा रहा हूँ मैं
आज कुछ दिन ही तो गुजरे हैं उसके बिना,
बीमार नहीं हूँ फिर भी बीमार सा लग रहा हूँ मैं
दुआ करो कि फिर न आये याद उसकी मुझे,
उसकी याद मिटाने को हर कदम उठा रहा हूँ मैं...