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Shanti Swaroop Mishra
Khudgarz Zamana Kya Samjhe
मूर्ख है दीपक, जो खुद को जलाता है जमाने के लिये
खुद को मिटा देता है, औरों का अंधेरा मिटाने के लिये
उसकी शहादत को भला ख़ुदगर्ज़ जमाना क्या समझे,
यहाँ तो हाथ बढ़ाते हैं सब, अपना मुक़ाम पाने के लिये...
Dard sehte umar guzar gayi
दर्द ए दिल सहते हुए तमाम उम्र गुज़र गयी
उनके इंतज़ार में शाम ओ सहर गुज़र गयी
अंजाम ए #मोहब्बत पता न था हमको
इसलिये ज़िंदगी यूं ही इंतज़ार में गुज़र गयी...
Beete Din lauta de koi
मेरे बीते दिन फिर से लौटा दे कोई
मेरे होठों पै हंसी फिर सजा दे कोई
वक़्त की मार से घायल है दिल,
उस पै थोड़ा सा मरहम लगा दे कोई
ज़फाओं के मेले से निकला हूं मैं,
फिर से सुख चैन वापस दिला दे कोई
मेरे जीवन के उजड़े हुए गुलशन में,
फिर से खुशियों के फूल खिला दे कोई
उड़ गए थे जो कभी वीराना देख कर,
मेरे उन परिंदों को फिर से बुला दे कोई
अंधेरों में रहते बहुत वक़्त गुज़रा,
अब तो उजालों का मौसम दिखा दे कोई...
Zindagi marne nahi deti
हर वक़्त कोसते हैं मौत को हम सब,
असल में तो ज़िंदगी जीने नहीं देती
वो सुला देती है आराम की नींद हमें,
पर ज़िंदगी है कि हमें सोने नहीं देती
तिल तिल कर मारने में आता है मज़ा,
मौत को झटके से गले लगाने नहीं देती
धकेल देती है रोज़ खुदगर्ज़ दुनिया में,
एक पल भी वो सुकून से रहने नहीं देती
मरते रहो तथा कथित अपनों के लिये,
कभी खुद के लिये कुछ करने नहीं देती
अफसोस होता है अपने होने पर हमें,
पर ये ज़िंदगी हमें जीने मरने नहीं देती