ज़िंदगी से अब कोई उम्मीद नज़र नहीं आती
संभलने की अब कोई तदबीर नज़र नहीं आती
ज़नाजा तो उठना है एक दिन ज़रूर
पर अभी से क्यों रातों को हमें नींद नहीं आती
बहुत हंसते थे औरों के बदहाल पर हम
अब तो किसी हालात पर हमें हंसी नहीं आती
अब तो चुप रहना है मज़बूरी हमारी वर्ना
दुनिया में कौन है जिसे बात करनी नहीं आती
कितना चिल्लायें हम कि वो सुन पाएँ
सुना है हमारे रोने की उन्हें आवाज़ नहीं आती
हमारी आरज़ू है कि वो सलामत रहें सदा
पर हमें अपनी ये ज़िंदगी अब रास नहीं आती...
क्या उनके लबों ने कभी मेरा गीत गुनगुनाया होगा
क्या किसी के पूछने पर उसने मेरा नाम बताया होगा
सुन के मंज़र मेरी बर्बादियों का किसी और से
क्या उनके खयालों में मेरा अक्श उभर आया होगा
बड़ी खुशफहमी पाल रखी है दिल ने उनके लिये
भला मेरे बदहाल से उन पर क्यों असर आया होगा
अपनी बेवफाई का आलम भूल पायेंगे कैसे भला
उन का दिया वो दर्द क्या उनको समझ आया होगा
हम तो गुनाहगार मानते हैं ख़ुद को अब भी
क्या उनके भी दिल में कभी ये ख्याल आया होगा...
दिल की दहलीज पर, फिर दस्तक दी है किसी ने
आज मेरे अरमानों को, फिर महक दी है किसी ने
अंधेरों में गुम ज़िंदगी जी रहा था मैं तो,
पर बुझते हुए दीये को, फिर चमक दी है किसी ने
वो दुनिया के सामने, अपना दर्द तो सुनाते रहे
पर हमारे बदहाल पर वो, हमेशा मुस्कराते रहे
हम बांटते रहे उनका ग़म ज़िंदगी भर,
पर वो थे कि हमारे दिल को हमेशा रुलाते रहे...
मेरी तक़दीर जाने कहाँ सो गयी है
अधरों की मुस्कान कहाँ खो गयी है
जीने की चाहत गयी है ठहर सी
मानो ज़िंदगी हमसे ख़फा हो गयी है
चाहत में एक कर दिये रात दिन
वो चाहत भी हमसे ज़ुदा हो गयी है
हमें गुमान था वो अपने हैं शायद
वो गलतफहमी अब दफा हो गयी है
सोचते थे उन पर है सिर्फ हक़ हमारा
पर उन पर तो दुनिया फिदा हो गयी है
बात यहीं खत्म होती तो शुक्र था पर
उनकी मोहब्बत अब ख़ुदा हो गयी है