ख़ुशी न दे सको,तो रुलाओ मत यारो,
गुनाहों को अपने, छुपाओ मत यारो !
ये जो दुनिया है सब जानती है दोस्त,
उसे झूठी कहानी, सुनाओ मत यारो !
देख लो झाँक कर अपना गिरेवां भी,
मुजरिम औरों को, बनाओ मत यारो !
गुनाहों की सजा तो मिल कर रहेगी,
इसे कोई साजिश, बताओ मत यारो !
न देखा चल के कभी सीधी डगर पर,
फिर राहों को दोषी, बताओ मत यारो !
ये दौलत का नशा मुबारक़ हो दोस्त,
पर गरीबों पे रुतबा,जमाओ मत यारो !
आज आँखों में आंसू, फिर छाये हुए हैं ,
फिर से बेचैनियों के लम्हे, आये हुए हैं !
गड़े मुर्दों ने फिर से ली है करवट यारो,
जिन्हें दफना कर हम तो, भुलाये हुए हैं !
खड़ा हूँ बीच रस्ते में हैरान सा हो कर,
कि ये यादों के तूफ़ान, क्यों आये हुए हैं !
घिर आये हैं बादल ग़मों के हर तरफ से,
दिल भी है बेबस, पाँव लड़खड़ाए हुए हैं !
फेंक देता है इंसान फालतू सामान यूं ही ,
कैसे फेंकें उनको, जो दिल को भाये हुए हैं !!!
आदमी से क्या क्या, न करा देता है ख़ुदा,
इंसान को खुला बाज़ार, बना देता है ख़ुदा !
उसे सब कुछ ही बटोरने की चाहत दे कर,
बेचारे इंसान को हैवान, बना देता है ख़ुदा !
कोई तो ओढ़ता है बिछाता है दौलत को,
तो किसी को भिखारी, बना देता है ख़ुदा !
ईमान ओ धरम तो ले लिए वापस उसने,
अब लम्पटों को नायक, बना देता है ख़ुदा !
सिक्के का एक ही पहलू न देखिये ,
कभी कभी बिगड़ी बात, बना देता है ख़ुदा !!
जो सच है, उसे तुम छुपाते क्यों हो !
अगर झूठ है, तो इधर आते क्यों हो !
दिल से पूछ कर जवाब देना दोस्त,
कि प्यार है तो, उसको छुपाते क्यों हो !
कहते हो कि मैं अकेला हूँ दुनिया में,
फिर रूठे हुओं को, यूं मनाते क्यों हो !
आंसुओं से पूंछो कि क्यों बेचैन हैं वो,
अपने दिल को, इतना सताते क्यों हो !
क्यों सजा रखा है इतना दर्द दिल में,
हर किसी को, बेवफा बताते क्यों हो !
दुनिया के मसले तो चलते रहेंगे दोस्त,
उलझ कर उनमें, जां फंसाते क्यों हो !
उनको तो हमारे, अहसानो वफ़ा याद नहीं !
हम मुज़रिम हैं उनके, मगर दफ़ा याद नहीं !
मोहब्बत के नाम पर मिला सिर्फ धोखा हमें,
दोस्ती की किताब का, कोई सफ़ा याद नहीं !
यूं ही ज़िल्लतों में काटी है ये उम्र हमने सारी,
थे कितनों से खुश, कितनों से ख़फा याद नहीं !
दब गए उनके कसूर सारे दौलत के ढेर में,
हमें कितना हुआ, नुकसान ओ नफ़ा याद नहीं !!!