जिधर देखता हूँ उधर, अँधेरा ही अँधेरा है !
न जाने कितनी दूर, मेरी रात का सवेरा है !
बामुश्किल बचा हूँ मैं दुश्मनों के चंगुल से,
मगर अफ़सोस मुझे, अपनों ने आ के घेरा है !
क्या गुल खिलाते हैं लोग देखना है ये आगे,
यहां तो हर तरफ, बस डाकुओं का बसेरा है !
ख़ुशी का कोई कोना न मिलता ढूंढने से अब,
जिधर देखो बस उधर, अब दहसतों का घेरा है !
लड़ रहे हैं लोग सब हड़पने को चीज़े गैरों की,
पर भूलते हैं कि दुनिया में, न मेरा है न तेरा है !
कब तक बचोगे दोस्त जमाने की साजिशों से,
दुनिया में हर शख्स ही, दिखता अब लुटेरा है !!!
मिली है ज़िन्दगी, तो जीना भी आएगा,
दुनिया के ग़मों को, सहना भी आएगा !
अभी #उदास हैं ज़माने के सताए हैं हम,
मगर कभी तो यारो, हंसना भी आएगा !
चुप चुप के जी रहे हैं अब तलक तो हम,
पर एक दिन जुबां से, कहना भी आएगा !
हैं #नफरतें ही जिनका धरम आज कल,
कभी #मोहब्बत से उन्हें, रहना भी आएगा !
वक़्त की चट्टानों ने रोका है जिस पानी को,
बंधनों के हटते ही, उसे बहना भी आएगा !
जिधर देखता हूँ वो अपने से दिखते हैं सब,
कभी कसौटी पे, उनको कसना भी आएगा !!!
मेरी #मोहब्बत का तुम, कुछ तो हिसाब दे दो !
कब से खड़ा हूँ दर पर, कुछ तो जवाब दे दो !
तुम्हारे सितम का हर हिसाब साथ लाया हूँ,
गर हैं तुम्हारे पास तो, कुछ और अज़ाब दे दो !
पागल था कि #ज़िंदगी भर लुटता रहा मैं यूं ही,
न दे सको गर सारा, मेरा कुछ तो उधार दे दो !
कर दूंगा मैं ज़िन्दगी तुम्हारी नफ़रतों के नाम,
मगर वापस मेरे नाम के, कुछ तो ख्वाब दे दो ! #दिल तो पड़ा है तुम्हारे ही पास गिरवी मेरे दोस्त,
कैसे जाऊं हाथ खाली, मुझे कुछ तो ज़नाब दे दो !!!
नज़दीक रह कर भी, तू जुदा सी लगती है !
हर वक़्त जाने क्यों, तू खफा सी लगती है ! #ज़िन्दगी न आया समझ हमें तेरा फ़लसफ़ा,
कभी हमसफ़र तो कभी, सजा सी लगती है !
हर #लम्हा गुज़ारा है इस कशमकश में हमने,
कि तू वफ़ा की आड़ में, ज़फ़ा सी लगती है !
न जाने कितने रंग देखे हैं इन आँखों ने तेरे,
मगर हर ढंग में हमेशा, तू जुदा सी लगती है !
न समझ पाए हम कि क्या है ज़िन्दगी यारो,
कभी तो दुश्मन तो कभी, ख़ुदा सी लगती है !!!
यहां किसी को, किसी में भी दिलचस्पी नहीं,
लोगों के मुखड़ों पर, वो बात वो मस्ती नहीं !
अब याद आते हैं अपने वो गुज़रे हुए ज़माने,
मगर उधर भी, वो बस्ती अब वो बस्ती नहीं !
बड़ा ही अजीब दरिया है ये #ज़िन्दगी भी यारो,
यहां पतवार तो हैं, लेकिन कोई भी कश्ती नहीं !
इस शहर में न बना पाये किसी को भी अपना,
हूँ तो मैं #मुसाफिर ही, मेरी तो कोई हस्ती नहीं !
हर चीज़ नहीं है नसीबों में हर किसी के दोस्त,
ईमान छोड़ कर यहां, कोई भी चीज़ सस्ती नहीं !!!