चाहे दरकीं हैं दीवारें, मगर घर अभी बाक़ी है
हालात बदले हों भले ही, असर अभी बाक़ी है
दिल में कितने ही सवालात हों ख़िलाफ़त के,
मगर जैसा भी है, रहने को शहर अभी बाक़ी है
बड़ी ही शान थी इन दर ओ दीवार की कभी,
मिट गयी वो रंगत, मगर खंडहर अभी बाक़ी है
यहाँ बसती है मेरे अहसासों की दुनिया दोस्तो,
बस जी लूं कुछ और, इतना सबर अभी बाक़ी है
नफरतें तो मिली खूब, मगर मोहब्बत न मिली,
दिल को ज़ख्म तो मिले, मगर चाहत न मिली !
कैसे हैं #नसीब वाले वो कि हंस लेते हैं खुल कर,
एक हम हैं कि मुस्कराने की, मोहलत न मिली !
ढूंढते रहे #दुनिया में हम खुशियों का कोई कोना,
मगर अफ़सोस, उधर जाने की हिम्मत न मिली !
कचोटते रहते हैं #दिल को वो गुज़रे हुए लम्हात,
मगर कोशिश के बाद भी, इनसे फुर्सत न मिली !
सोचता था यारो कि न आये ख़म किसी रिश्ते में,
पर अफ़सोस, मेरे अहसास को इज़्ज़त नहीं मिली !!!
जो चलाते हैं खंज़र, भला उनका क्या जाता है ,
देख कर दर्द औरों का, उनको तो मज़ा आता है !
नहीं ढूढता हल कोई किसी की मुश्किलों का,
इस शहर में लोगों को, बस खेल करना आता है !
नफरतें, हिकारतें जम चुकी हैं दिलों में अब तो,
बस ज़रा सी बात पर ही, बवाल करना आता है !
बेग़ैरती तो बन चुकी है ज़िन्दगी का एक हिस्सा,
इसी के चलते लोगों को, कमाल करना आता है !
दौलत के नशे में कुछ भी कर गुज़रता है आदमी,
इसी के बल पे उसे, सच को झूठ करना आता है !
ये ज़िन्दगी, बस रूठों को मनाते गुज़र गयी,
रोते रहे खुद, पर औरों को हंसाते गुज़र गयी !
हमें तो न बसा पाया कोई भी दिल में अपने,
मगर औरों को, दिल में ये बसाते गुज़र गयी !
लिखे हैं मुकद्दर में अज़ाब न जाने कैसे कैसे,
कि #ज़िन्दगी यूं ही, बस लड़खड़ाते गुज़र गयी !
मिले हर तरफ इंसान हमें पत्थर दिल इतने,
कि ये ज़िन्दगी, उनको ही पिघलाते गुज़र गयी !!!
किसी भी हालात में, जीना आता है हमें,
ग़मों को ज़िगर से, लगाना आता है हमें !
जानते हैं कि फितरतें कैसी हैं दुश्मनों की,
मगर हाथ फिर भी, मिलाना आता है हमें ! #ज़िन्दगी गुज़ार दी यूं ही फासलों में हमने,
दूर रह के भी, साथ निभाना आता है हमें !
बेख़बर हैं दिल में उमड़ते शोलों से हम तो,
क्योंकि #चाहत में, दिल जलाना आता है हमें !
ग़म नहीं कि चमन में कुछ भी न बचा दोस्त,
फिजां को खुशगवार, बनाना आता है हमें !!!