रूठे गर जमाना भी, तो मना लेंगे हम,
भड़कते हैं शोले भी, तो बुझा देंगे हम !
अपनों का साथ हो तो ग़म कैसा यारो,
फिर ज़ख्मों की टीस भी, भुला देंगे हम ! #ज़िन्दगी को जीने का हुनर आता है हमें,
कच्चे धागों को भी, रेशम बना देंगे हम !
एक सपना जो देखते हैं हर रोज़ ,
कभी दुश्मन को भी, दोस्त बना लेंगे हम !
ये नाम किस के लिए, बदनाम किस के लिए,
ज़रा सी ज़िन्दगी है, अभिमान किस के लिए !
पल का भी न भरोसा है किसी की ज़िंदगी का,
तो फिर वर्षों के लिए, इंतज़ाम किस के लिए !
माना कि तोड़ा है दिल तुम्हारे अपनों ने दोस्त,
पर लेते हो अपने दिल से, इंतक़ाम किस के लिए !
नहीं मानता है तुम्हारा अहसान कोई भी अब ,
फिर आफ़त में फंसाते हो, जान किस के लिए !
कहाँ से चले थे मगर कहाँ आ गए, हम संभलते संभलते
खुद को ही बदल डाला हमने, दुनिया को बदलते बदलते
न बदल पाये हम ग़मों को ख़ुशी में कोशिशों के बाद भी,
हो गयीं दफ़न हसरतें सारी, #ज़िंदगी की शाम ढलते ढलते
कभी देखे थे किसी की शोख अदाओं के जलवे भी हमने,
मगर बुझ गए न जाने कब, आशाओं के दीप जलते जलते
जिसके लिए बग़ावत भी कर डाली अपनों से हमने मगर,
अफ़सोस वो भी बदल गया खुद, इस ज़माने से लड़ते लड़ते...
दिल को मनाने में, ज़रा मुश्किल तो होती है,
किसी को भुलाने में, ज़रा मुश्किल तो होती है !
ये शहर तो बेगानों का शहर है मेरे दोस्त,
इधर घर बसाने में, ज़रा मुश्किल तो होती है !
यूं तो ज़ख्म भर जाते हैं वक़्त के साथ साथ,
मगर टीस भुलाने में, ज़रा मुश्किल तो होती है !
भले ही #ज़िन्दगी सिलसिला है हार जीत का,
मगर हार भुलाने में, ज़रा मुश्किल तो होती है !
गली में घूमते फिरते हैं बेरहम भेड़िये ,
उनसे जान बचाने में, ज़रा मुश्किल तो होती है !
हैं करम उनके दोषी मगर, तक़दीर को दोष देते हैं
वो बोते हैं खुद बबूल मगर, जमीन को दोष देते हैं
न झांकता है कोई भी अब गिरेवां आजकल अपना
करते हैं क़त्ल खुद ही मगर, औरों को दोष देते हैं
चालाकियां दौड़ती हैं रगों में आदमी के अब दोस्त
कमाल है कि अब तो, चोर भी शाह को दोष देते हैं
कौन ऐसा है इस दुनिया में जो दोषी न हो,
पर खुद को बताकर शरीफ, ज़माने को दोष देते हैं...