गुज़रेगी चैन से ज़िन्दगी, हम भी मतलब परस्त हो गए,
चमकते थे सितारे बन आँखों में जो, कब के अस्त हो गए
सीख पाये हैं ये हुनर #ज़िन्दगी बिखर जाने के बाद दोस्तो,
जो संभाले थे हौसले जतन से हमने, ख़ुदाया पस्त हो गए !
हमने मगर आदमी की दी नफरतों से, फ़रिश्ते भी त्रस्त हो गए,
कर दी क़ुर्बान ज़िन्दगी की हर ख़ुशी जिनके लिए,
आज वही हम को भुला कर, अपने ख़्वाबों में मस्त हो गए !
तुम्हारे चेहरे पे, रंजो ग़म अच्छे नहीं लगते,
हमको गुलों के संग, खार अच्छे नहीं लगते !
तू कहे तो चले जायेंगे तेरी नगरी से मगर,
इतना भर कह दो, कि हम अच्छे नहीं लगते !
जो कहना है सामने बयां कर दो तो अच्छा,
पीठ पीछे तीर चलाने, हमें अच्छे नहीं लगते !
कभी बेचैन रहते थे जो हमारे दीदार के लिए,
अब तो हमारे साये भी, उन्हें अच्छे नहीं लगते !
ये #ज़िन्दगी हमारी है जी लेंगे जैसे भी ,
मगर लोगों के बीच चर्चे, हमें अच्छे नहीं लगते !
जुगनुओं की रोशनी से, अँधेरा हटा नहीं करता,
कभी शबनम की बूंदों से, दरिया बहा नहीं करता !
भले ही फंस जाये दुष्टों की चालों में इंसान कभी,
मगर कभी सच के सामने, झूठ टिका नहीं करता !
गर #ज़िन्दगी में गम नहीं तो जीने का मज़ा क्या,
सिर्फ खुशियों के नाम पर, वक़्त कटा नहीं करता !
उम्र गुज़र जाती हैं किसी का इंतज़ार करते करते,
मगर #मोहब्बत में आशिक़, पीछे हटा नहीं करता !
आईने के सामने कितना ही मुंह बनाइये,
पर उसके सामने कभी, कोई दाग छुपा नहीं करता
जीना चाहा तो ज़िन्दगी, दूर होती चली गयी !
कमाल ये कि हर शै, मजबूर होती चली गयी !
चाहने न चाहने से कुछ भी नहीं हुआ करता,
जिस चीज़ को भी चाहा, दूर होती चली गयी !
समझते थे हम दुनिया #महफ़िल है खुशियों की,
पर वक़्त के साथ वो भी, क्रूर होती चली गयी !
पागल थे हर किसी पर जान छिड़कते रहे हम,
पर दिल की मज़बूरी, मजबूर होती चली गयी !
अपनाया जिसने चाहा मतलब के लिए,
हमारे लिए तो #दोस्ती, दस्तूर होती चली गयी !
न जाने इस जुबां पे, वो दास्तान किसके हैं,
दिल में मचलते हुए, वो अरमान किसके हैं ?
सोचता हूँ कि खाली है #दिल का हर कोना,
मगर यादों के आखिर, वो तूफ़ान किसके हैं ?
मैं तो खुश हूँ कोई गम नहीं मुझको दोस्तों,
पर दिल में बसे, वो ग़मे अनजान किसके हैं ?
लगता है कि तन्हा ही गुज़र जाएगी #ज़िंदगी,
पर दिल में जो बैठे हैं, वो मेहमान किसके हैं ?
मानता हूँ कि न चला कोई भी साथ दूर तक,
पर सजा रखे हैं, वो साजो सामान किसके हैं ?
दिखता तो ऐसा है कि बस बेख़बर हैं,
पर चेहरे पे उभरे, वो गम के निशान किसके हैं ?