Shanti Swaroop Mishra

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Zindagi ki har khushi

लेते हैं हर चीज़ मेरी, अपना सामान समझ कर,
जब मांगते हैं हम, तो देते है अहसान समझ कर !
गैरों से बात करते हैं जैसे कि वो अपने हैं उनके,
पर हमसे पेश आते हैं वो, पराया इंसान समझ कर !
छुपा रखा है उनको #ज़िन्दगी समझ कर दिल में,
मगर पेश आते हैं हमसे वो, अनजान समझ कर !
हमें #मोहब्बत है उनसे जानते हैं बदस्तूर वो मगर,
उड़ा देते हैं जज़्बात मेरे, वो एक नादान समझ कर !
कर दी निसार उन पर ज़िन्दगी की हर ख़ुशी,
पर भूल गया हमें वो, खोया हुआ ईमान समझ कर !

Aadmi Ke Roop Anek

कभी ख़ारों, तो कभी फूलों की तरह दिखता है आदमी !
कभी अंधेरों, कभी उजालों की तरह दिखता है आदमी !
कभी दिखता है पत्थर #दिल कभी शराफत का पुतला,
तो कभी उलझे हुए, सवालों की तरह दिखता है आदमी !
कभी दिखता है #दुश्मन तो कभी नज़र आता है दोस्त,
तो कभी बिगड़ी हुई, रवायतों की तरह दिखता है आदमी !
कभी तो दिखता है उछलता डूबता सोचों के सागर में,
तो कभी छलकते हुए, जामों की तरह दिखता है आदमी !
कभी तो दिखता है वो खूंखार क़ातिल की तरह,
तो कभी ज़ख्मों पर, मरहमों की तरह दिखता है आदमी !

Kitne Matlabi Hain Hum

कितने मतलबी हैं हम, कि अपना ही घर देखते हैं !
गर जलता है घर किसी का, तो अपने हाथ सेकते हैं !
कितने छलों प्रपंचों से भरे हैं इस दुनिया के लोग,
कि #खून के रिश्तों में भी, परायों सा अक्स देखते हैं !
हम हैं कि क्या क्या सोचते हैं गलत औरों के फेर में,
अफसोस कि खुद को भी, औरों की नज़र से देखते हैं !
गीता का ज्ञान भी उल्टा हो गया है आजकल दोस्तो,
लोगों के शरीर ज़िंदा हैं मगर, #आत्मा मरी देखते हैं !
मिट गए न जाने कितने #ख़ुदा की तलाश में,
मगर अब तो हर तरफ हम, ख़ुदा ही ख़ुदा देखते हैं !

Sitare Badal Jate Hain

देखते ही देखते, सितारे बदल जाते हैं !
हाथ में आकर, किनारे फिसल जाते हैं !
दोस्तो उलझनों का सागर है ज़िंदगी,
इसके, साँझ और सकारे बदल जाते हैं !
रफ़्ता रफ़्ता खिसकती है ये #ज़िंदगी,
देखते ही देखते, नज़ारे बदल जाते हैं !
बहुत मतलबी हो गया है ये जमाना,
देखते ही देखते अब, नारे बदल जाते हैं !
कोई खुश भी रहे तो कैसे रहे ?
जाने क्यों वक़्त के, इशारे बदल जाते हैं

Main Khwab Dekhta Hun

बड़ा ज़ुर्म करता हूँ कि, मैं ख्वाब देखता हूँ !
दिल के टूटे टुकड़ों का, मैं हिसाब देखता हूँ !
ये बेरहम दुनिया के बेरहम लोग हैं यारो ,
उनके कारनामों की, मैं किताब देखता हूँ !
गुनाह है गर ज़िंदगी तो क्यों न मार डालो,
वैसे भी क़ातिलों का, मैं इंतज़ार देखता हूँ !
कौन सा ज़िंदा हूँ मैं जो मरने से डर जाऊं ,
रोज़ ही हर मोड़ पे, मैं ज़हरे अज़ाब देखता हूँ !
कौन जी पाता है आज अपने मुताबिक,
हर चेहरे पर अज़ीब सा, मैं तनाव देखता हूँ !