यारो कैसा ये इत्तेफ़ाक़ है, ये कैसा नसीब है,
होता है वही दूर, जो होता दिल के करीब है ! #दीदार के लिए तरस जाती हैं आँखें मगर,
वो मिलता है किसी और से, कैसा #नसीब है !
सोचा था कि आएगा हमसे ज़रूर मिलने,
आया था पर नहीं मिला, कितना अजीब है !
एक भूल कर बैठे कि गैर को अपना समझा,
पर गिर गया इतना वो नीचे, कैसा ज़मीर है !
दिल के नोंचने से भला क्या मिलेगा ?
बस सोच लो इतना कि, उसका बदनसीब है !
हमें तो हर कदम पर, ग़मों का ज़हर पीना पड़ा है
जीने की चाहत है मगर, घुट घुट कर जीना पड़ा है
दुनिया से जज़्बा ए मोहब्बत ख़त्म हो रहा है अब,
बोलने का हक़ है मगर, इन होठों को सीना पड़ा है
लोगों को #मोहब्बत नहीं अपनी दौलत पर घमंड है,
मगर हमें तो ख़ुदा के, रहमो करम पर जीना पड़ा है
न निभाया साथ उसने भी जिसको कहा था अपना,
हमें तो अपनी #ज़िन्दगी को, तन्हा ही जीना पड़ा है
उम्र के इस पड़ाव पर भी लगता है डर मुझको यारो,
सताते हैं वो अफ़साने, जिसका किरदार जीना पड़ा है
कैसे जियें, ये दर्दे दिल मुस्कराने नहीं देता,
कोई, ज़ज़्बात ए #मोहब्बत निभाने नहीं देता !
बिछा देता है राह में हज़ार कांटे ये जमाना,
वो कभी भी, खुशियों के पल आने नहीं देता !
पीछे खींचने की फितरत है हर आदमी की,
यहां किसी को भी कोई, आगे जाने नहीं देता !
कैसे लिख सकें हम खुशियों के तराने,
जब #दिल, खुशनुमा अल्फ़ाज़ बनाने नहीं देता !
कभी ख्वाहिशों ने, फंसाया ज़िन्दगी को
तो कभी ज़रूरतों ने, रुलाया ज़िंदगी को !
कभी राह में गैरों ने बिछाए कांटे दोस्तो,
तो कभी अपनों ने, छकाया ज़िन्दगी को !
कभी ख्वाबों में खुश हो लिए हम यूं ही,
तो कभी हक़ीक़तों ने, सताया ज़िंदगी को !
कभी ख़ुशी के रंगों से पुलकित हुआ दिल,
तो कभी मुश्किलों ने, हराया ज़िन्दगी को !
कभी चढ़ते गए #मंज़िल की सीढियाँ ,
तो कभी दुश्मनों ने, गिराया ज़िन्दगी को !
खुशियों का दुश्मन, जमाना क्यों बन बैठा !
जिसको भी चाहा, वही बेगाना क्यों बन बैठा !
रहता है कश्मकश में ज़िन्दगी का हर लम्हां,
ये #जीवन यादों का, #सफरनामा क्यों बन बैठा ! #ज़िंदगी की किताब के बचे हैं आखिरी पन्नें,
उनका पढ़ना भी, एक फ़साना क्यों बन बैठा !
देखा था #ख़्वाब हमने भी हसीन ज़िन्दगी का,
मगर मरना ही, जीने का बहाना क्यों बन बैठा !