Shanti Swaroop Mishra

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Khushiyon ke wo pal

तुम मुझे खुशियों के वो पल दोबारा दे दो
मेरी डूबती नैया को ज़रा सा सहारा दे दो
मुद्दत सी गुज़र गयी हमें अकेले अकेले,
बस इक बार अपनी झलक का नज़ारा दे दो
भले ही गुलाब फैले हैं तुम्हारे दामन में,
मुझे खुशबू नहीं बस यादों का पिटारा दे दो
मैं तो दर्द के दरिया में अब डूबने लगा हूँ,
बस बढ़ा के हाथ अपना मुझे किनारा दे दो

Zara sambhal kar rahiye

बा -मुश्किल मिली है आज़ादी, ज़रा संभल के रहिये
पहना दे बेड़िया फिर से न कोई, ज़रा संभल के रहिये
ज़र्रे ज़र्रे में मिला है खून शहीदों का वतन वालो,
ऐसी ज़मीने हिंद को न घूरे कोई, ज़रा संभल के रहिये
खिसका देते हैं पडोसी कुछ नाग हमारे घर में भी
हमें फन उनका भी कुचलना है, ज़रा संभल कर रहिये
डटे हैं जांबाज़ सीमा पर आँखें लगाये दुश्मनों पर
घर के अंदर भी हैं दुश्मन हमारे, ज़रा संभल कर रहिये
लहराता रहे तिरंगा अज़ीमो शान से हर तरफ
उठे न कोई बदनज़र उस पर कभी, ज़रा संभल कर रहिये

Shohrat hamesha nhi rehti

ये दबदबा ये हुक़ूमत का मज़ा, हमेशा नहीं रहा करता
ये दौलतों ये शोहरतों का नशा, हमेशा नहीं रहा करता
कोई नहीं जानता ख़ुदा के इशारों को दोस्तो,
यहाँ अंधेरों व उजालों का समां, हमेशा नहीं रहा करता

Dil se dil nahi milata koi

आज आँखों से आँखें, नहीं मिलाता कोई
आज #दिल से भी दिल, नहीं मिलाता कोई
नज़र आता है हर कोई खोया हुआ सा,
अब महफ़िल में जलवे, नहीं दिखाता कोई
भागता फिरता है न जाने क्या पाने को,
अब अपनों में चंद लम्हें, नहीं बिताता कोई
खोजता फिरता है वो जीने के साधन नए,
मगर अपने लिए कुछ भी, नहीं बनाता कोई
ये ख्वाहिशें ये सामान किस के लिए है,
सब कुछ यहीं का है, साथ नहीं ले जाता कोई...

Soch ke Afsane kal ke

कर लिए जतन इतने, अपने आप को बदल के
फिर भी गुज़री #ज़िन्दगी, बस आसुओं में ढल के
यूं ही चलती रही ज़िंदगी ग़मों का कारवां लेकर,
पर न आया कोई रहगुज़र, न देखा साथ चल के
दिखता है दूर से तो लगता है कोई अपना है, मगर
जब गुज़रता है क़रीब से, रह जाते हैं हाथ मल के
जीना था जब अकेले ही तो फिर भीड़ क्यों दे दी,
मिलता है क्या तुझको खुदा, इंसान को यूं छल के
उम्र गुज़र गयी मोहब्बत के बिन जीते जीते,
अब गुजरेंगी सुबहो शाम, सोच कर अफ़साने कल के...