तूने ऐ ख़ुदा, ये अजीब दुनिया क्यों बनाई,
#मोहब्बत बनाई, तो फिर नफ़रत क्यों बनाई !
जब तेरी ही तासीर है हर इंसान में ऐ रब,
तो फिर #दोस्ती बना के, दुश्मनी क्यों बनाई !
सुना है कि तू ही लिखता है मुकद्दर सभी के,
बस इतना बता दे कि, बदनसीबी क्यों बनाई !
जब तेरी ही औलाद है दुनिया का हर #इंसान,
तो फिर तूने, अमीरी और गरीबी क्यों बनाई !
जब तू ही समाया है हर तरफ हर ज़र्रे में रब,
फिर हर चीज़ तूने, अपनी परायी क्यों बनाई !
क्या मज़ा आता है तुझे दुनिया के इस खेल में,
बेइज़्ज़ती बनानी थी, फिर इज़्ज़त क्यों बनाई !
जब मौत ही है आखिरी मंज़िल हम सभी की,
तो फिर भटकने को तूने, ज़िन्दगी क्यों बनाई !

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