शरीफ़ों को दुनिया में, अब इज़्ज़त नहीं मिलती,
मुफ़्त में किसी को, अब मोहब्बत नहीं मिलती !
गर कोई नाराज़ है तो भला क्या करें हम यारो,
मज़बूर हैं कि उनसे, अब तबियत नहीं मिलती !
मुस्कराते चेहरों के पीछे क्या छुपा है क्या पता,
हमें दिलों में झांकने की, अब फुर्सत नहीं मिलती !
अफसोस, कितना गिर गया है ये जमाना अब तो,
यारो इधर तो ईमान से, अब सौहरत नहीं मिलती !
अब तो बेचैनियों का आलम दिखता है हर तरफ,
चाहत की हर किसी को, अब दौलत नहीं मिलती !
बस कहने को ये ज़िन्दगी बड़ी हसीन है "मिश्र",
पर खुशियों से जीने की, अब मोहलत नहीं मिलती !!!