हमें मोहब्बत की अदाएं, दिखाना नहीं आता
हमको महल आसमां पर, बनाना नहीं आता

ज़रा सा कच्चे हैं हम यारो इश्क़ के मसले में
हमें अपना चीर के सीना, दिखाना नहीं आता

है अंदर कितनी चाहत ये तो दिल जानता है,
हमको यूं तमाशा सरेआम, दिखाना नहीं आता

जाने लिखे हैं तराने कितने मुहब्बत पर हमने,
मगर यूं महफ़िलों में हमको, सुनाना नहीं आता

डरते हैं हम तो इस जमाना की बुरी नज़रों से,
मगर फिर भी हमें खुद को, छुपाना नहीं आता

हम तो वैसे ही हैं 'मिश्र' जैसे दिखते हैं ऊपर से,
मुखौटा वनावटों का हमको, लगाना नहीं आता

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