तेरे बिना ये ज़िन्दगी भी, एक सज़ा लगती है
दिल की धड़कन भी मुझे, एक कज़ा लगती है
ठंडक पड़ जाती है मेरे दुखते ज़ख्मों में यार,
जब बताते हैं लोग कि, तेरी भी रज़ा लगती है
ज़फ़ाओं की नगरी में मैं किससे उम्मीद करूं,
कभी तो मेरी ज़िन्दगी भी, मुझे खफ़ा लगती है
तेरा हर खून माफ़ है मेरे #दिल की अदालत में,
वो भला क्या जाने कि, कौन सी दफ़ा लगती है...

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