जाम में फंसी मेरी गाड़ी से, जन्नत की एक रूह यूं ही टकराई
मैने पूंछा मन नहीं भरा, जो तू जन्नत से फिर यहाँ चली आई
वो बोली, वहां की आवोहवा में दम घुटता है,
जन्नत में नहीं मिली धुएं की ख़ुराख, तो यहाँ लेने चली आई

भारत देश से जाने वाली हर रूह, वहां यूं ही बीमार पड़ी है
जन्नत के हर हकीम के सामने, एक विकट समस्या खड़ी है
जन्नत में इस बीमारी की दवा ‘प्रदूषण’ कहीं नहीं मिलता,
अतः बीमार हर रूह, भारत के चौराहों पर मुंह बाये खड़ी है
 

Leave a Comment