बिठा दें चाहे लाख पहरे, ये जमाने वाले,
मगर घुस ही जाते हैं, दिल जलाने वाले !
कर सकते हैं राख उनको भी ये शोले,
भला कहाँ सोचते हैं ये, घर जलाने वाले !
अब तो मदद करना भी गुनाह है दोस्तो,
नहीं हैं कम इधर, इलज़ाम लगाने वाले !
बड़ा बेरहम है आज का ये जमाना दोस्त,
लापता हो जाएंगे, तुझ पे जाँ लुटाने वाले !
कहाँ फंस गए ठगों की नगरी में हमतो,
न मिलेंगे ढूंढें से अब, दोस्ती निभाने वाले !

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