ज़िन्दगी के बुरे पल, चुप चाप गुज़र जाने दो
क़यामत के तूफ़ान, बस यूं ही गुज़र जाने दो
वक़्त आएगा ज़रूर कि छंट जायेगा अँधेरा,
ज़रा सा बादलों के पीछे से, चाँद उत्तर आने दो
क्यों आये हो नए ज़ख्म देने के लिए दोस्त,
जो दे चुके हो पहले, ज़रा उन्हें तो भर जाने दो
दिले नादाँ को कैसे बताऊँ दुनिया की फितरत,
कि कहते हैं यहाँ लोग, जो मरता है मर जाने दो
ढूंढते रहे वो कमियां हमारे मिज़ाज़ में मगर,
जानते हैं मिज़ाज़ हम भी उनका, मगर जाने दो
बहुत कोशिशें की है संभल जाने की हमने,
अब बिखरनी है ज़िन्दगी, तो फिर बिखर जाने दो

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