जीते रहे हैं ज़िन्दगी, किसी का उधार समझ कर ,
निभाते रहे हम रिश्ता, किसी को प्यार समझ कर !
देते रहे सबूत हम अपनी बेगुनाही का हर समय,
पर भुला दिया उसने, हमें गुज़री बहार समझ कर !
बदल गया है सब कुछ ये तो किस्मत की चाल थी,
मगर नज़रें घुमा लीं उसने, हमें बदकार समझ कर !
न पढ़ सके हम उसके चेहरे की इबारत को दोस्तो,
हमने तो दे दिया था दिल, अपना ऐतबार समझ कर !
अब तो ये मोहब्बत भी एक बिकाऊ चीज़ है दोस्त ,
लोग कर देते हैं माल वापस, उसे बेकार समझ कर !

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