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ज़िंदगी तो वीरान है, और बस कुछ भी नहीं
यूं धड़कनें ही शेष है, और बस कुछ भी नहीं
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आज नसीब साथ है, तो उसका सबब तुम हो
खुशियाँ मेहरवान हैं, तो उसका सबब तुम हो
मैं कैसे न लुटा दूं जान तुम पर सनम,
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तेरे सिवा इस
दुनिया में, मेरा अपना कुछ भी नहीं
मेरी अपनी झोली में, यादों के अलावा कुछ भी नहीं
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अनजान सा डर मुझे डराता क्यों है
जो गुज़र गया वो याद आता क्यों है
ढूढ़ती हैं हर वक़्त ये निगाहें किसको,
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दुनिया की बेरुख़ी ने, चुप रहना सिखा दिया
ज़िंदगी का हर गम, हमें सहना सिखा दिया
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अब कुछ कहने कुछ सुनने से डरता हूँ मैं
उनकी महफिल में भी जाने से डरता हूँ मैं
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खिंची चली आती हैं तितलियाँ, फूलों के क़रीब
भंवरे भी छेड़ते हैं अपनी तान, फूलों के क़रीब
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मतलबी ज़माने से, बहुत बेज़ार है मेरा दिल
किसी की चाहतों का, तलबगार है मेरा दिल
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मुस्कराते रहें आप, हज़ारों ग़मों के होते हुए
जैसे हँसता गुलाब, हज़ारों कांटों के होते हुए
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इंसान के सभी ख़्वाब, कभी पूरे नहीं हुआ करते
आज जैसे हालात हैं, वो हमेशा नहीं हुआ करते
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