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दुनिया के सारे ग़म को, दिल में समां लिया मैंने
एक फूल से दिल को भी, पत्थर बना लिया मैंने
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बस तमाम उम्र, गलती यही वो करता रहा,
औरों की गलतियां, अपने सर वो धरता रहा !
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अपनी तो ज़िन्दगी का, बस फ़साना बन चुका है,
था दिल के क़रीब जो भी, वो बेगाना बन चुका है !
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दुनिया की सारी दौलतें भी, हैं भला किस काम की,
अपनों के बिन ये शौहरतें भी, हैं भला किस काम की !
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अपनी "आदतों" के अनुसार चलने में,
इतनी "गलतियां" नहीं होती....
जितनी
दुनिया का ख्याल और लिहाज़…
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ढूंढते हैं जिसे हसरतों से, वो प्यार नहीं मिलता,
खार मिलते हैं मगर, गुले गुलज़ार नहीं मिलता
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कुछ लोगों को, बस कमियां गिनने की आदत होती है,
दूसरों के घर में, झाँक कर निकलने की आदत होती है !
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नफरतें तो मिली खूब, मगर मोहब्बत न मिली,
दिल को ज़ख्म तो मिले, मगर चाहत न मिली !
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चाहे दरकीं हैं दीवारें, मगर घर अभी बाक़ी है
हालात बदले हों भले ही, असर अभी बाक़ी है
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न बची जीने की चाहत तो मौत का सामान ढूंढता है,
क्या हुआ है दिल को कि कफ़न की दुकान ढूंढता है
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