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दर्द
गैरों को सुनाने की ज़रूरत क्या है
अपने साथ औरों को रुलाने की ज़रूरत क्या है
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मेरे महबूब मुझे रोज़ मिला कर.!
गैर ख़यालों में रहूं ना दुआ कर.!!
मैने हमदम है कहा तुम को.!
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सिर्फ पानी को देखकर प्यास को बुझाया नहीं जाता,
केवल चाहने से किसी को पाया नहीं जाता,
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खुद कुछ ना कर पाओ, तो चाहतों को दबाना बेहतर है
अपनों पर भरोसा उठ जाये, तो
गैरों का सहारा बेहतर है
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दोहरे चरित्र के लोगों से तो, बस भगवान बचायें
क्या है उनके अंतर्मन में,कैसे क्या अनुमन लगायें
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जो पास हैं उसकी कोई बात नहीं करता
सिर्फ दूर वालों की याद आती है
घर की मुर्गी की कोई कद्र नहीं करता
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ये रंगों और उमंगों का, त्यौहार है होली
गैरों को दोस्त बनाने का, त्यौहार है होली
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कभी वीरानों में भी फूल खिल जाते हैं
कभी
गैरों में भी हमसफर मिल जाते हैं
कहीं किसी को कब्र नसीब नहीं होती
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दुनिया तो बाज़ार बन गयी, हर आदमी सौदा करता है
गैरों की बात अलग समझो, वो अपनों से सौदा करता है
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कभी दिल टूट गया, तो कभी सपने बिखर गये
कभी
गैरों की कशमकश में, अपने बिखर गये
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