कभी वीरानों में भी फूल खिल जाते हैं
कभी गैरों में भी हमसफर मिल जाते हैं
कहीं किसी को कब्र नसीब नहीं होती
तो कहीं कब्रों पर मक़बरे बन जाते हैं
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कभी वीरानों में भी फूल खिल जाते हैं
कभी गैरों में भी हमसफर मिल जाते हैं
कहीं किसी को कब्र नसीब नहीं होती
तो कहीं कब्रों पर मक़बरे बन जाते हैं