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अंधेरे में धक्का देकर, खुद ही पूछते हैं किसने गिरा दिया
खुद ही आग लगा कर, वे पूछते हैं
घर किसने जला दिया
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फिर उसी चाँद से रिश्ता बना बैठे,
फिर उसी सादगी से फरेब खा बैठे
पत्थरों से थे तालुकात हमारे,
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कोई तो अपने
घर पर सोये, कोई सड़कों पर रैन गुजारे
ये भी कैसा नसीब है
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एक उजड़े हुए चमन में, कभी फूल नहीं खिला करते
कंगाल के
घर में कभी, जवाहरात नहीं मिला करते
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मुझे बड़ा दिल नहीं बस बड़ा
घर चाहिये
मुझे झूठे सपने नहीं बस हकीकत चाहिये
प्यार से किसी का पेट नहीं भरता
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उम्र के लिहाज़ से अहसास बदल जाते हैं
वक़्त के हिसाब से हालात बदल जाते हैं
सोचता था
घर बनाऊँगा आसमां पर
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तेरा रूप चमन की खुशबू, यहाँ भंवरों की कोई कमी नहीं
पर वफा नहीं इन भंवरों में, यहां फूलों की कोई कमी नहीं
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जो पास हैं उसकी कोई बात नहीं करता
सिर्फ दूर वालों की याद आती है
घर की मुर्गी की कोई कद्र नहीं करता
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(image)
अपना
घर छोड कर, ठिकाना सीमा पर बना लिया
अपनी भी माता है मगर, भारत को माता बना लिया
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शहर की चका चोंध में, सब कुछ भुला दिया हमने
मिट्टी का वो
घर, वो आँगन, सब भुला दिया हमने
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