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रिश्तों के टूट जाने से अरमान बिखर जाते हैं
जिंदगी की दौड में यूं ही कदम ठहर जाते हैं
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खुशियों की महफिल भी, कहर
नज़र आती है
किसी की मीठी ज़ुबां भी, ज़हर
नज़र आती है
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कोयले के टुकड़े, जमा करते रहे हीरा समझ कर
अपनों को सम्हाले रहे, नायाब नगीना समझ कर
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उनींदी आँखों में, कुछ सपने से
नज़र आते हैं
कुछ तो पराये से, कुछ अपने से
नज़र आते हैं
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उनकी याद में, गुज़री हैं हमारी रातें अक्सर
घूमते काटी हैं, सितारों के बीच रातें अक्सर
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ज़रा देर तो ठहर, मेरे दिल से उतर के ना जा
अपनी ज़िद में आ के, हमें बर्बाद कर के ना जा
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ज़ख्मों का दर्द, छुपा के देख लिया हमने
अपने ज़िगर को, जला के देख लिया हमने
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उनकी नज़रों में मिट्टी के घर नहीं आते
रहने वालों के उन्हें हाल
नज़र नहीं आते
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दुनिया में न जाने कैसा, ये मंज़र
नज़र आता है,
मुखौटों के पीछे असल में, कुछ और
नज़र आता है...
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ज़रूरत नहीं है, किसी को भी ज़ख्म दिखाने की
बड़ी ही दिल फरेब है
नज़र, ज़ालिम ज़माने की
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