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उम्र के लिहाज़ से अहसास बदल जाते हैं
वक़्त के हिसाब से हालात बदल जाते हैं
सोचता था घर बनाऊँगा आस
मां पर
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एक मंजिल मिले तो अगली की तलाश करो
ज़मीं मिल जाये तो आस
मां की तलाश करो
आस
मां से आगे जहां और भी है,
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कदम रुक गए जब पहुंचे हम रिश्तों के बाज़ार में...
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शहर की चका चोंध में, सब कुछ भुला दिया हमने
मिट्टी का वो घर, वो आँगन, सब भुला दिया हमने
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अगर ठोकर लगती है तो रास्तों को दोष देते हैं
खिलाडी हार जाते हैं तो निर्णय को दोष देते हैं
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दुनिया तो बाज़ार बन गयी, हर आदमी सौदा करता है
गैरों की बात अलग समझो, वो अपनों से सौदा करता है
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वो अपनी गंवाई नींदों का, कभी हिसाब नहीं रखती
रात भर गीले में सड़ने का, कभी हिसाब नहीं रखती
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एक बार एक बेटे ने अपनी माँ से कहाः
अम्मा मैने रेडियो पे सुना कि
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कभी दिल टूट गया, तो कभी सपने बिखर गये
कभी गैरों की कशमकश में, अपने बिखर गये
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भले ही छूलो आस
मां, पर इस जमीं को मत भूल जाना
जी भर के जीलो #जिंदगी, पर अपनों को मत भूल जाना
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