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बिन सावन बरसात नहीं होती,
सूरज डूबे बिन
रात नहीं होती;
होते हैं कुछ ऐसे दोस्त ऐसे भी,
जिनको याद किए बिना
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हवा में अनजान सा डर, बसा क्यों है,
हर लम्हा ज़िन्दगी का, खफा क्यों है !
गुज़रती हैं स्याह
रातें करवटें बदलते,
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छिपकली
रात भर सैंकड़ों कीड़े-मकौड़े खाकर
सुबह होते ही महापुरषों की तस्वीर के पीछे छिप जाती है,
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निकल पड़ते हैं जज़्बात, क्या करें
दिल में अटकी है हर बात, क्या करें
उमड़ता रहता है दर्दे दिल अंदर ही,
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