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किस को
हकीकत कहें, किस को वहम समझें
किस को कमतर कहें, किस को अहम समझें
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क्या दौर आया है #वक़्त का यारो,
हरेक शख्स पर छाया, #मोहब्बत का बुखार मिलता है...
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कभी ख्वाहिशों ने, फंसाया ज़िन्दगी को
तो कभी ज़रूरतों ने, रुलाया ज़िंदगी को !
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अपने दर्दे दिल से अब सिहरने लगा हूँ मैं
खुद की ही खोदी कब्र में गिरने लगा हूँ मैं
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फरेबियों को तो हम, अपना समझ बैठे
हक़ीक़त को तो हम, सपना समझ बैठे
मुकद्दर कहें कि वक़्त की शरारत कहें,
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न बची जीने की चाहत तो मौत का सामान ढूंढता है,
क्या हुआ है दिल को कि कफ़न की दुकान ढूंढता है
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आये थे ऐसे कि, दिल में समा कर चले गए,
सो रहे थे चैन से, कि वो जगा कर चले गए !
न ठहरे वो इक पल भी मेरे गरीबखाने पर,
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जब नफ़रत भरी है दिल में, तो मोहब्बत क्या करेगी,
जब चाहत है डूब मरने की, तो किस्मत क्या करेगी!
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कभी मेरी भी ज़िन्दगी तुम, बिता कर तो देखो ,
कभी खुद को मेरी आग में, जला कर तो देखो !
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गज़ब किया जो तेरे वादे पे एतबार किया,
तमाम रात हमने क़यामत का इंतज़ार किया...
न पूछ #दिल की हक़ीक़त मगर यह कहतें है,
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