कभी मेरी भी ज़िन्दगी तुम, बिता कर तो देखो ,
कभी खुद को मेरी आग में, जला कर तो देखो !
कैसे गुज़रते हैं #ज़िन्दगी के लम्हें तुम क्या जानो,
ज़रा अपनी आँखों पे पड़े पर्दे, हटा कर तो देखो !
बहुत ज़ख्म खाये हैं इस बेक़रार दिल ने दोस्त,
कैसे बहता है समंदर आँखों से, आ कर तो देखो !
हम तो खोये हैं आज भी उन गुज़रे हुए लम्हों में,
आकर के कभी हम को, गले लगा कर तो देखो !
दिखता है मेरे चेहरे पे नहीं है वो हक़ीक़त,
गर जानना है सच तो #दिल में, समा कर तो देखो !

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