आज के बच्चे, ज्यादा सयाने हो रहे हैं
वो कुछ अलग से ही, रंग में खो रहे हैं
भूल गये हैं वचपन की कहानियाँ वो,
कुछ तो अपने मां बाप से, दूर हो रहे हैं
चिढ़ाते हैं वे युगान्तर की बात कहकर,
आधुनिकता के नाम पर, बर्बाद हो रहे हैं
सादा सी ज़िंदगी रास नहीं आती उन्हें,
वो अंग्रेजियत के, काफी करीब हो रहे हैं
बुरा नहीं है जमाने के साथ चलना यारो,
पर चादर से बाहर, उनके पाँव हो रहे हैं...
अब कुछ कहने कुछ सुनने से डरता हूँ मैं
उनकी महफिल में भी जाने से डरता हूँ मैं
कभी बात करते थे हम जान तक देने की
या खुदा अब तो उनके साये से डरता हूँ मैं
हमें प्यार है उनसे जानता है ज़माना सारा
पर अफ़सोस उन्हें खुद बताने से डरता हूँ मैं
अंधेरों में रहने की आदत पड़ी है इस क़दर
अब तो दिल में दीपक जलाने से डरता हूँ मैं
ख़ुदा ने इंसान बनाया इस दुनिया क़ी ख़ातिर
अफसोस ख़ुद को इंसान बताने से डरता हूँ मैं
दुनिया की बेरुख़ी ने, चुप रहना सिखा दिया
ज़िंदगी का हर गम, हमें सहना सिखा दिया
नहीं होता अहसास हमें किसी दर्द का अब,
यूंही क़ातिलों के बीच, हमें रहना सिखा दिया
बहुत शुक्रिया उन राहों के पत्थरों का दोस्तोि,
जिन की ठोकरों ने, हमें चलना सिखा दिया
ये करम है इस खुदगर्ज़ जमाने का दोस्तो,
कि दुश्मन दोस्त में, फ़र्क करना सिखा दिया...
हो जाएं दीदार उनके, तो इनायत होगी
मेरे दर्द ए दिल में, कुछ तो राहत होगी
हर ख़ता की सज़ा कबूल कर लेंगे हम,
गर साफ दिल से, उनकी इजाज़त होगी
ग़म के फसाने न सुनायेंगे हम उन को,
गर उन्हें सुनने में, कोई शिकायत होगी
रो लेंगे दिल खोलके कभी अकेले में हम,
मेरे बे पनाह सब्र की, गर इजाज़त होगी...
किसी अज़नबी को, अपना बनाने की ज़िद न करो
किसी और की अमानत को, पाने की ज़िद न करो
रहते हैं प्यार के लुटेरे इस इलाक़े में मेरे दोस्त,
लुट जाओगे प्यार में, उधर जाने की ज़िद न करो
जो फंस गये खुद व खुद गुनाहों के दल दल में,
खुद को फंसा कर, उनको बचाने की ज़िद न करो
ज़िंदगी के सफर में सीधी राह भी पाती है मंज़िल,
टेढ़ी राहों पै चल के, मंज़िल पाने की ज़िद न करो...