बिता दी हमने यूं ही, ये ज़िन्दगी किस के लिए !
उधार ला कर रख दी, ये रौशनी किस के लिए !
गफ़लतों के शहर में कुछ भी न आता है समझ,
आखिर #दिल के सामने, ये बेबसी किस के लिए !
ज़िन्दगी के सफर में देखा है जाने कितनों को,
कोंन दिल में आ घुसा, ये बेकली किस के लिए !
जब अंधेरों में भटकना #नसीब है अपना ,
तो #ज़िन्दगी की रात में, ये चाँदनी किस के लिए !
तेरे सब्र का नतीजा भी, ज़रूर निकलेगा !
मुश्किलों से बाहर भी तू, ज़रूर निकलेगा !
न सोच कि हैं दुनिया में सिर्फ दगाबाज़,
यहाँ कोई तो ईमानदार, ज़रूर निकलेगा !
मुस्कराते चेहरों से अंदाज़ा मत लगाइये,
दिल उनका भी ग़मों से, मजबूर निकलेगा !
न रहेंगी हमेशा ये आफतों की काली रातें,
यक़ीनन सूरज वक़्त पर, ज़रूर निकलेगा !
मतलबी यार से मदद की आस क्या कीजे,
वो तो ज़रुरत पर हमेशा, मजबूर निकलेगा !
जो पढ़ाते हैं जहां को #मोहब्बत का सबक,
झाँक कर देखो दिल, चकनाचूर निकलेगा !!!
जर्जर है बुनियाद, तो रंग कराने से क्या होगा,
बेज़ार है गर दिल, तो मुस्कराने से क्या होगा ! #ज़िंदगी बिता दी पर न आयी दुनियादारी हमें,
अब बूढ़े तोते को, क़ुरान पढ़ाने से क्या होगा !
बहता है जिस दिल में नफ़रतों का लावा यारो,
भला उसे हर्फ़-ए-मोहब्बत, पढ़ाने से क्या होगा !
अपने कर्मों को सुधारे वो तब तो कोई बात बने,
वर्ना उसके कुकर्मों पे, पर्दा गिराने से क्या होगा !
लिखा है जो #नसीब में, कौन टाल सकता है,
पर मरने से पहले, कफ़न मंगाने से क्या होगा !!!
किसी की जान, किसी का ऐतबार थे हम भी,
यारो कितने ही दिलों का, क़रार थे हम भी !
झेला है मुश्किलों का दौर भी हमने जमकर,
फिर भी मोहब्बतों के, तलबगार थे हम भी !
दिल की बेताबियाँ बेचैनियां देती थीं गवाही,
कि किसी की चाहतों में, गिरफ़्तार थे हम भी !
बेमियाद सफर का अंजाम कुछ न था चाहे,
मगर मंज़िल की तलाश में, बेक़रार थे हम भी !
कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया रहमतों ने उनकी,
कितनों की कद्रदानी के, कर्ज़दार थे हम भी !
अच्छा है कि खुल गयी असलियत अपनों की,
वरना तो कभी दिल से, तरफदार थे हम भी !!!
अब तो जुबां को, चुप कराने पे लगे हैं लोग ,
जब जीतने लगे हैं, तो हराने पे लगे हैं लोग !
एक वक़्त था कि दौड़ पड़ते थे उठाने को,
अब तो न जाने क्यों, गिराने पे लगे हैं लोग !
मुश्किल से पनपा है मेरी मेहनत का शज़र,
अब तो उसी की जड़, मिटाने पे लगे हैं लोग !
किसी की खुशियां न भाती अब किसी को,
अब तो औरों का घर, जलाने पे लगे हैं लोग !
नहीं फलती झूठ और फरेबों से मिली दौलत,
फिर भी इन्ही से दिल, लगाने पे लगे हैं लोग !
इक दिन तो रह जायेगा सब कुछ यहीं पे ,
फिर किस के लिए, धन जुटाने पे लगे हैं लोग !!!